आनंदयात्री
आनंदाच्या शोधात निघालेला
आणि प्रत्येक गोष्टीत आनंद शोधणारा
– निलेश दिलीपराव झाल्टे
माझ्या कविता ज्या तुम्हाला नक्की आवडतील - My Own Poems
फुल
एक फुल था
प्यार से मैने फुलाया था
जल, हवा मिट्टी से
मैने उसे खिलाया था
न जाने कहासे
एक कोई शैतान आया
और इस जहासे
उसने फुलको उठाया
क्या कसूर था
ऊस बिचारे फुल का
या फार फुल को बढाया था
इस मेरे भूल का
मुसाफीर
मुसाफीर हुं मै यारो,
चलना मेरा काम था।
परवाने कई मिलते गये,
मिलना उनका काम था।
प्यार दिया मैने,
जीन्होने मुझे प्यार दिया।
जीन्होने मुझसे व्यवहार किया,
मैने उनसे व्यवहार किया।
अब यहा आ पहुचा,
पता नही कबतक रहू।
रुकना मुझे मुंकीन नही,
मै तो एक मुसाफिर हु।
जागने का वक्त है।
बहोत हो गयी निंदियाराणी।
अब जागने का वक्त है।
दुष्मनोकी खतम हुई मनमानी
अब उनके भागने का वक्ते है।
निष्पाप कई लोगोका
गीर रहा यहा रक्त है।
फिर नई आजादी को
दिल मेरा आसक्त है।
हर जगा है भागा दौडी
हर जगा पे आवेश है।
उठो प्यारे नवं जवानो
खतरेमे अपना प्रदेश है।
चारोळी
तुझी आठवण आली
कि मन जरा खट्टू होत,
तू आहेस इथेच आसपास
अस सांगितल तरी लट्टू होत.
कि मन जरा खट्टू होत,
तू आहेस इथेच आसपास
अस सांगितल तरी लट्टू होत.
चारोळी
मनाच्या गाभाऱ्यात
तुझीच उभी मूर्ती
जगण्याला मिळते प्रेरणा
अन पुढे जाण्याची स्फूर्ती